MP News: पूर्व नेता प्रतिपक्ष और विधायक अजयसिंह (Ajay Singh) ने कहा कि भाजपा सरकार भोपाल के हजारों पेड़ों को काटने का पाप एक बार फिर करने जा रही है।
मंत्रियों और विधायकों के बंगलों के नाम पर तुलसी नगर और शिवाजी नगर के 29 हजार से अधिक पेड़ काटने का प्रस्ताव अंतिम चरण में है, सिर्फ मुख्यमंत्री की मंजूरी बाकी है। उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन यादव से आग्रह किया है कि वे विकास और विनाश में फर्क करें और इस आत्मघाती प्रस्ताव को मंजूरी बिलकुल न दें। बिल्डरों और अधिकारियों की मिलीभगत से इसमें एक बड़े षडयंत्र की बू आ रही है। प्रथम दृष्टया प्रस्ताव सिरे से खारिज करने लायक है। पहले रिडेवलपमेंट, फिर स्मार्ट सिटी और गेमन प्रोजेक्ट और बाद में कोलार रोड के चौड़ीकरण के लिये हजारों पेड़ो की बलि दी जा चुकी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कांक्रीट बढ़ाकर हम खूबसूरत हरे-भरे भोपाल को हीट आईलैण्ड बना रहे है। यही कारण है कि गर्मी में भोपाल का औसत तापमान पाँच से सात डिग्री तक बढ़ गया है।
इसे हाल ही में भोपाल वासियों ने महसूस भी किया है। हरियाली बासठ प्रतिशत से घट कर ग्यारह प्रतिशत ही रह गयी है। हरियाली भोपाल की पहचान है। अच्छा होता कि एकतरफा प्रस्ताव तैयार करने के पहले पब्लिक ओपीनियन भी प्राप्त कर ली जाती। भाजपा सरकार पूरी तरह मनमर्जी पर उतारू है।
सिंह (Ajay Singh) ने कहा कि पेड़ कटने के बाद मौसम परिवर्तन हो रहा है। लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर हो रहा है और बीमारियाँ बढ़ रही हैं। सरकार का कृत्य पूरी तरह “शुद्ध हवा में जीने के मानव अधिकारों” का उलंघन है। एनजीटी लगातार आपत्ति जता रही है लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। हरियाली को नष्ट करना सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और अंतर्राष्ट्रीय पेरिस समझौते का उलंघन भी है।
सरकार को सभी पहलुओं पर देना होगा ध्यान
अजयसिंह (Ajay Singh) ने कहा कि आज भोपाल को स्व. एम. एन. बुच की याद आ रही है जिन्होंने 81-82 में वन सचिव रहते हुए सैकड़ों प्रजातियों के 50 हजार पेड़ लगाकर क्षेत्र को हरा-भरा बनाया था। उन्होंने कहा कि जब मंत्रियों और विधायकों के लिये जरूरत से ज्यादा बंगले पहले से ही मौजूद हैं तो नये बनाने की क्या जरूरत है। यदि बनाना ही है तो ऐसी जगह चुनी जाये, जहाँ पेड़ न काटना पड़े। पुराना एमएलए रेस्ट हाऊस, भेल क्षेत्र, नीलबड़, रातीबड़ आदि बहुत सारे स्थान हैं। इच्छा शक्ति हो तो सारे विकल्प निकल आते हैं। एक ओर तो सरकार जल स्रोतों के उन्नयन के लिये हरित क्षेत्र विकसित करने का अभियान चला रही है वहीं दूसरी ओर पेड़ काटने के लिये भी उतारू है। भाजपा सरकार का यह कैसा विरोधाभास है जो सबकी समझ से परे है| विभिन्न नागरिक संगठन, एनजीटी., फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी भी कर रहे है। सरकार को सभी पहलुओं पर ध्यान देना चाहिये।
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