कुछ माह पहले नगर निगम सिंगरौली में बतौर महापौर कमान के खिलाफ सोमवार में कांग्रेस ने हल्लाबोल कर दिया। इस दौरान कांग्रेस का आरोप था कि महापौर ने चुनाव दौरान जनता से जो वादे किए थे उसे वह पूरा नहीं कर रहीं। लेकिन कांग्रेस के जिन नेताओ ने इस मुद्दे को उठाया, उनकी इस सोच से खुद कांग्रेस पार्टी के ही पार्षदों की सोच मेल नहीं खाती। ये हम नहीं बल्कि महापौर के समर्थन में उतरे कॉग्रेस पार्टी के पार्षदों के बयान तो कुछ ये ही स्थितियां बयां कर रहे हैं।
सूत्रों की माने तो पार्टी का एक तीसरा धड़ा जो इस विरोध-समर्थ से किनारा किया था, उसका भी यह मानना है कि महापौर द्वारा किये गए वादों के न पूरा होने पर विरोध करना गलत नहीं है, लेकिन हम किसी को काम करने का कुछ समय भी न दें और उस पर बरस पड़े तो यह भी सही नहीं। साथ ही ये पक्ष यह भी मानता है कि विरोध-समर्थ के इन दो पक्षों से प्रतीत होता है कि धरना देने वालों ने अपनी ही पार्टी के पार्षदों को दरकिनार किया।
जबकि मामला नगर निगम है तो अपनी पार्टी के पार्षदों से पहले विचार-विमर्श कर लेना चाहिये, फिर प्रदर्शन आदि की रणनीति बनती तो हालात कुछ और होते।