आदेश के बाद वन विभाग ने शुरू की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जमीन वापस लेने संबंधी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अगले एक साल में जमीन वापस लेनी होगी। जो जमीन वापस नहीं ली जा सकती, उसका मूल्य वसूल करना होगा। अब यदि इस आदेश के तहत वन विभाग कार्रवाई करता है तो कई बड़े सरकारी प्रोजेक्ट संकट में पड़ सकते हैं। वन भूमि पर कब्जा जमाकर बैठे माफिया की भी शामत आनी तय है। यदि कार्रवाई नहीं की तो सुप्रीम कोर्ट में वन विभाग के अफसरों का नपना तय है। वन विभाग के एसीएस अशोक बर्णवाल ने इस संबंध में आदेश जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा:
1. वन विभाग के कब्जे से बाहर ऐसी जमीन जो वन भूमि के रूप में अधिसूचित है और राजस्व विभाग के कब्जे में है या राजस्व विभाग ने किसी संस्था, व्यक्तियों को उपयोग के लिए दी है अथवा उस जमीन पर अवैध कब्जा है, ऐसी सभी जमीन को एक साल के भीतर वापस लिया जाए।
2. अधिसूचित वन भूमि जिस पर राजस्व विभाग के अतिरिक्त किसी अन्य का कब्जा व प्रबंधन हो, यदि वह सार्वजनिक हित में वापस नहीं ली जा सकती तो उसके बदले में उक्त भूमि का मूल्य वसूल किया जाए। उक्त राशि से दूसरे स्थानों पर पौधे लगाकर वन तैयार किए जाए।
इसलिए लाखों हेक्टेयर जमीन लेनी होगी
वन मामलों के जानकार अनिल गर्ग का कहना है कि आदेश की व्याख्या के आधार पर एसीएस वन ने जो आदेश जारी किया है उसमें सभी तरह की वन भूमि की बात शामिल है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि वन विभाग ने 1980 के पहले राजस्व विभाग को करीब दो लाख हेक्टेयर जमीन ट्रांसफर की थी, जो सड़कें, नहरें, डैम बनाने के लिए दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वापस लेनी होगी जमीन
1980 के पहले भी करीब 17 लाख हेक्टेयर जमीन ऐसे ही कामों के लिए दी गई थी। बाकी की हजारों हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा है। इस तरह इन सबको मिलाया जाए तो कोर्ट के आदेश के तहत वन विभाग को ये सभी जमीनें वापस लेनी होंगी। कोर्ट ने कहा कि ऐसी जमीन जो वन भूमि है लेकिन विभाग के कब्जे से बाहर है उस जमीन को वापस लिया जाए।