टंकियों का काम अधूरा, डेडलाइन नजदीक
प्रोजेक्ट की निर्धारित डेडलाइन 25 सितंबर 2025 है, लेकिन अभी तक 102 में से एक भी पानी की टंकी पूरी तरह तैयार नहीं हो सकी है। 40 टंकियों पर तो काम शुरू ही नहीं हुआ है, जबकि बाकी स्थानों पर निर्माण बेहद धीमी गति से चल रहा है। धर्मपुर गांव में टंकी का काम केवल 40 फीसदी तक ही हो पाया है, और कई गांव जैसे मुंड़ेरी, कटहर, मढ़ा और सलैया में तो काम की शुरुआत भी नहीं हो सकी है।
मुख्य पाइपलाइन और फिल्टर प्लांट का हाल भी चिंताजनक
इस परियोजना के अंतर्गत मझगुवां डेम से पानी लाकर 750 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन के जरिए गांवों तक जल पहुंचाने की योजना है। लेकिन यह पाइपलाइन अब तक पूरी नहीं बिछाई जा सकी है। वहीं, डेम के पास बनने वाले फिल्टर प्लांट और संपवेल का कार्य भी केवल 25 फीसदी ही हो पाया है। इससे साफ है कि समय पर प्रोजेक्ट पूरा कर पाना मुश्किल होता जा रहा है।
मानकों की अनदेखी, निर्माण गुणवत्ता पर सवाल
निर्माण कार्य की गुणवत्ता को लेकर भी गंभीर सवाल उठने लगे हैं। जानकारी के अनुसार, कई स्थानों पर पाइपलाइन को निर्धारित 1 मीटर की गहराई में न बिछाकर केवल डेढ़ से दो फीट की गहराई में डाला गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भविष्य में पाइप फूटने और जल आपूर्ति बाधित होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में निर्माण की गुणवत्ता और निगरानी को लेकर भी जवाबदेही तय करना जरूरी हो गया है।
अब कंपनी मांग रही एक्सटेंशन और लागत संशोधन
प्रोजेक्ट की धीमी गति के पीछे भूमि अधिग्रहण और वन विभाग की अनुमति में देरी को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। मुख्य पाइपलाइन का एक हिस्सा वन भूमि से होकर गुजरता है, जिसके लिए 3.5 हेक्टेयर भूमि की जरूरत है। यह प्रक्रिया अभी अधूरी है और इसमें और समय लग सकता है। इन देरी को आधार बनाकर प्रोजेक्ट से जुड़ी कंपनी अब एक्सटेंशन और रेट रिवीजन की मांग कर रही है। जानकारों के अनुसार, कंपनियां ऐसे मामलों में कानूनी रास्ता अपनाकर लागत बढ़वाने और समय सीमा बढ़वाने की रणनीति अपनाती हैं, जिससे उन्हें वित्तीय लाभ हो सके।
प्रशासन का दावा – अब काम में आएगी तेजी
जल निगम के प्रबंधक हिमांशु अग्रवाल का कहना है कि अब तक सभी टंकियों के लिए भूमि उपलब्ध हो चुकी है, जिससे काम में तेजी लाई जाएगी। उन्होंने बताया कि अब तक 60 टंकियों पर कार्य शुरू हो चुका है और प्रोजेक्ट का लगभग 60 फीसदी कार्य पूर्ण हो चुका है। महाप्रबंधक एलएल तिवारी ने कहा कि प्रोजेक्ट को समय पर पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन कंपनी द्वारा एक्सटेंशन की मांग पर विचार किया जा रहा है।
निष्कर्ष: प्रोजेक्ट पर खतरे के बादल, अब भी समय रहते संभलना जरूरी
हर घर नल जल अभियान का लवकुशनगर-गौरिहार प्रोजेक्ट न केवल एक बड़ी वित्तीय योजना है, बल्कि यह 278 गांवों के लाखों लोगों के जीवन से जुड़ा मुद्दा भी है। अगर निर्माण की धीमी रफ्तार, गुणवत्ता में लापरवाही और कंपनी को रियायतें देने का सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो यह प्रोजेक्ट अपने मूल उद्देश्य से भटक सकता है। ज़रूरत इस बात की है कि सरकार और प्रशासन सख्त निगरानी और जवाबदेही तय करें, ताकि यह योजना सिर्फ कागजों में न रह जाए, बल्कि हकीकत में गांवों तक जल पहुंचे।