एक मां की पुकार और एक समाजसेवी की लगन, सुशीला को मिला नया जीवन | A mother’s call and a social worker’s dedication gave Sushila a new life

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पानीपत की महिला को दिया सहारा व स्नेह

छतरपुर रेलवे स्टेशन पर जब सुशीला भटकी हुई हालत में मिली, तो सिविल लाइन थाना पुलिस ने उसे तत्काल वन स्टॉप सेंटर पहुंचाया। वहां उसकी मानसिक स्थिति को देखते हुए 3 दिन बाद निर्वाना फाउंडेशन को उसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। फाउंडेशन के संचालक संजय सिंह और उनकी टीम ने सुशीला की देखरेख शुरू की। शुरुआती दिनों में वह मानसिक रूप से बेहद कमजोर थी, लेकिन इलाज और स्नेहपूर्ण माहौल में वह धीरे-धीरे ठीक होने लगी। जैसे-जैसे सुशीला की मानसिक स्थिति सुधरी, उसने बातचीत में अपने बारे में जानकारी देनी शुरू की। उसने बताया कि वह हरियाणा के पानीपत की रहने वाली है, उसके तीन बच्चे हैं और वह अपने परिवार के साथ कुरुक्षेत्र जा रही थी, लेकिन बीच में किसी बात पर नाराज होकर ट्रेन से नहीं उतरी और अंजाने में छतरपुर पहुंच गई।

परिजनों को खोजने के लिए किए सारे जतन सुशीला की भावुक बातों और अपने बच्चों को याद कर बार-बार रोने से संजय सिंह बेहद व्यथित हुए। उन्होंने तय किया कि वह सुशीला को हर हाल में उसके घर पहुंचाएंगे। इसके लिए उन्होंने हरियाणा पुलिस, सामाजिक संस्थाएं और स्थानीय परिचितों से संपर्क किया। लगातार प्रयासों के बावजूद जब कुछ सुराग नहीं मिला, तो संजय सिंह ने खुद हरियाणा जाने का फैसला कर लिया। वो शुक्रवार को हरियाणा के लिए रवाना हुए ही थे कि रास्ते में उन्हें एक फोन आया। उस फोन कॉल ने सारी मेहनत का फल दे दियासुशीला के परिजन मिल चुके थे। सूचना मिलते ही वे तुरंत छतरपुर लौटे और सुशीला के परिजनों को छतरपुर बुलाया गया।

अपनो से मिली तो फूट-फूटकर रोने लगी

सुशीला की बहन शर्मिला अपने बच्चों के साथ छतरपुर पहुंची और निर्वाना फाउंडेशन परिसर में वह पल आया जिसने सबकी आंखें नम कर दीं। सुशीला अपनी बहन और बच्चों को देखते ही दौड़ पड़ी और गले लगकर फूट-फूटकर रोने लगी। दोनों बहनें काफी देर तक एक-दूसरे से लिपटी रहीं। वहां मौजूद सभी लोग इस भावुक मिलन को देखकर बेहद भावुक हो गए।

सुशीला बोली- मुझे दूसरा जीवन मिला

मीडिया से बात करते हुए सुशीला ने कहा, जब मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, तब संजय सिंह और उनकी पत्नी अपराजिता सिंह ने मेरा ऐसे ध्यान रखा जैसे अपने परिवार के किसी सदस्य का रखते हैं। मैं उन्हें मां-बाप का दर्जा देती हूं। वे न होते तो मैं आज अपने बच्चों से कभी नहीं मिल पाती। संजय सिंह ने बताया कि सुशीला के साथ बिताए दिनों में उन्होंने एक मां की ममता और एक बहन की पीड़ा देखी। उन्होंने कहा, हमारा फाउंडेशन सिर्फ सेवा का कार्य करता है। जब कोई बिछड़ा व्यक्ति अपने परिवार से मिलता है, तो वह भावनात्मक क्षण ही हमारे काम का सबसे बड़ा पुरस्कार होता है।

समाज के लिए प्रेरणा है यह कार्य

निर्वाना फाउंडेशन का यह प्रयास सिर्फ एक महिला को उसके परिवार से मिलाने का मामला नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक संवेदनशीलता और मानवता की मिसाल है, जिसकी आज सबसे अधिक ज़रूरत है। ऐसे कार्य समाज को बतलाते हैं कि थोड़ी सी कोशिश, थोड़ा सा धैर्य और सच्ची सेवा भावना किसी का जीवन बदल सकती है।



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