ऊर्जाधानी के वाहन संचालकों में आजकल है रवि नाम की चर्चा, कहते हैं कि साहब जहां जाते हैं वहां रवि को भी ले जाते हैं। रवि की किरणों (लाल स्याही) से रोशन हुए बिना फाइल पर साहब के दस्तखत नहीं होते। वाहनों से जुड़ा पूरा काम व वसूली आदि अब रवि के जिम्मे है। शिकायतों के चलते कंपनी की कड़ाई के कारण कुशवाहा किनारे हो गए थे, मगर आजकल रवि से इनका साथ बादलों वाला हो गया है। साहब का चालक इंट्री फीस का जिम्मा उठाता है। बाकी हर शाखा का प्रभारी किसी ने किसी ड्राइविंग स्कूल से जुड़ा है…
आपने विक्रम-बेताल की कथा तो सुनी और पढ़ी ही होगी। आजकल यह कथा जिला मुख्यालय के बगल पचौर में आरटीओ कार्यालय में चरितार्थ हो रही है। यहां जब से ऑफिस गया है तब से कर्मचारियों के साथ नए साहब की भी पौबारह हो गई है। माजन मोड़ पर भी जब कार्यालय था तब भी मौज ही थी, मगर पचौर में पूरी आजादी है। उधर, पुराने दुबे जी सेवानिवृत्त हुए तो रवि को लेकर आए नए साहब ने पदभार संभाल लिया। कहते हैं कि रवि और साहब का साथ विक्रम-बेताल जैसा है। साहब जहां-जहां जाते हैं रवि को वहां भी ले जाते हैं। आजकल वाहन संचालक व चालक रवि की किरणों का ताप नहीं सह पा रहे हैं। फाइल पर रवि की लाल स्याही नहीं लगी है तो साहब उसे डंप कर देते हैं। जिस फाइल पर लाल स्याही लगी है वह फटाफट पास हो जाती है। कंपनियों के वाहनों का फिटनेस बिना आए होने की बात आम है। ड्राइविंग स्कूल वाले भी बिना ट्रेनिंग दिए मौज में हैं, क्योंकि डीएल उन्हीं का बनता व नवीन होता है जो चालक प्रशिक्षण का प्रमाणपत्र लाते हैं। कुल मिलाकर सहकार के रेशों से कार्यालय में भ्रष्टाचार की बुनावट है। एक बात और, हर दिन कार्यालय आने-जाने व रहने वाले बताते हैं कि साहब टैक्सी परमिट का वाहन साथ लेकर जांच के लिए निकलते हैं। वैसे इनके वाहन का चालक भी कम होशियार नहीं है। प्राइवेट चालक होने के बाद भी इंट्री वसूली का जिम्मा इसी के पास बताया जाता है। फिलहाल, आरटीओ कार्यालय जिंदाबाद है।
बस नाम के हैं मोटर ट्रेनिंग स्कूल
विभाग से मान्यता प्राप्त दो मोटर ट्रेनिंग स्कूल संचालित हैं। किसी वाहन एजेंसी का मोटर ट्रेनिंग स्कूल माड़ा के पास बहेरी में संचालित बताया जाता है तो दूसरा नवजीवन विहार में है। इनसे कितनों ने प्रशिक्षण लिया यह शोध का विषय है। बहेरी वाले मोटर ट्रेनिंग स्कूल के संचालक के मकान में आरटीओ के कर्मी बतौर किराएदार रहते हैं। यही लाइसेंस शाखा में बाइक व प्राइवेट एलएमवी पंजीकरण, प्राइवेट एलएमवी ट्रांसफर देखते हैं। जो भी डीएल बनवाने आता है उसके लिए इन स्कूलों से प्रमाणपत्र लेना जरूरी होता है।
ऑनलाइन काम के बाद भी फाइलें
कार्यालय का सारा काम ऑनलाइन है, इसके बाद भी फाइलें तैयार होती हैं, मगर वे दस्तावेज शाखा में जमा नहीं होतीं। फाइलें कहां रखी जाती हैं इसके बारे में तैयार करने वाले ही जानते हैं। वाहन एजेंसियों का काम भी ऑनलाइन है, मगर उनसे फाइल तैयार कराकर मंगाई जाती है। फिलहाल, सब कुछ रवि के जिम्मे है।
फटाफट संपन्न हो जाता है फिटनेस
कोयला परिवहन व खनन से जुड़े वाहनों का फिटनेस आमजन की गाडिय़ों की तरह यहीं से होता है। इसमें कंपनियों की सहूलियत का पूरा ख्याल रखा जाता है। बहुत जरूरी है तो दो-तीन में सौ-दो सौ वाहनों का भी फिटनेस हो सकता है। गाडिय़ां भी सुविधानुसार कंडम घोषित की जाती हैं। चर्चा तो ये है कि इसके लिए प्रति वाहन बीस से तीस हजार रुपये रेट फिक्स है। यहां इससे कम पर काम नहीं चलता।