विंध्य आजतक विशेष: काश यह ठंडी ऐसे ही रहती…

By
Last updated:
Follow Us

रचनाकार- ललिता मेश्राम

विधा- बाल साहित्य
ई मेल- laita260374@gmail.com

 

काश यह ठंडी ऐसे ही रहती,
न स्कूल जाती न होमवर्क करती।

दिन भर रजाई ओढ़कर सोती,
मम्मी बनातीं रोज खीर-पूरी।

मैं आंगन से कभी धूप पर जाती,
कभी धूप से फिर अंदर आती।

मम्मी से बनवाती गाजर का हलवा, मैं खूब खाती।
आते इस ठंडी में रोज़, नाना-नानी दादा-दादी।
सिगड़ी जलाकर आग सेंकते, लोरिया-कहानियां रोज सुनाते।

पापा कहते इस ठंडी में,
स्कूल मत जाओ बच्चों।
इस ठंड से बचो बच्चों,
कांश यह ठंडी ऐसे ही रह जाती।

 

ये भी पढ़िए-

मवेशियों का डेरा बनीं सड़के, सुरक्षा कैसे हो CM साहब?, जानिए किसने पूंछा

For Feedback - vindhyaajtak@gmail.com 
Join Our WhatsApp Channel

Leave a Comment

Live TV