विंध्य आजतक खास: “कुके कोयलिया काली”

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रचनाकार- अंकलेश्वर सोनी

शिक्षक, सन शाइन स्कूल वैढन, जिला- सिंगरौली (मप्र)

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अमिया लागी बौर-अमिया लागी बौर, कूके कोयलिया काली।………..

ऋतु छाई बसंत बहार, कूके कोयलिया काली।………….

बैरी सुगनवा डाली डोलावे, अमिया चूसे मनवा मोहावे।
कुतरै चारिउ ओर – कुतरै चारिउ ओर, कूके कोयलिया काली।।

खेतों में गोरी किसानिन बिहरैं, पीली-पीली सरसों लहरैं।
लहरैं गेहूँ बाल-लहरैं गेहूँ बाल, कूके कोयलिया काली।।

इक तो चंदा की छिटकी अंजोरी, दूजे झूमे जोवना निगोरी।
जैइसै भयो भोर-जैइसै भयो भोर…..कूके कोयलिया काली।।

चोंच सुगनवा की लाल किनारी, यमुना के तीरे बांके बिहारी।
राधा संग श्याम-राधा संग श्याम, कूके कोयलिया काली।
ऋतु छाई बसंत बहार, कूके कोयलिया काली।।

 

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