Lifestyle News: ‘ओल्ड इज गोल्ड’ केवल पर्सनैलिटीज (personalities) के लिए ही नहीं कहा जाता बल्कि खाने-पीने की चीजों के लिए भी हो सकता है।क्या आपने पुराना घी, सालभर पुराना गुड़ या कुछ वर्षों से कंटनेर में रखा शहद चखा है? अगर चखा है तो आप इनके स्वाद को जानते होंगे।दिलचस्प(Interestingly) यह है कि ये चीजें जितनी पुरानी होती जाती हैं इनका स्वाद ही नहीं, बल्कि मेडिसिनल (medicinal) वैल्यू भी बढ़ती जाती है।
भारत में कुछ दशक पहले तक घरों में पुराने घी(old ghee), गुड़ और शहद का इस्तेमाल खूब होता था। आज भी कुछ लोग इनका प्रयोग करते हैं।दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद (All India Institute of Ayurveda) की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शिवानी घिल्डियाल (Dr. Shivani Ghildiyal) बताती हैं कि पुराना घी उग्रगंधी यानी तेज गंध वाला होता है। इसकी गंध अच्छी नहीं लगती लेकिन सामान्य घी की तुलना में इसमें मेडिसिनल (medicinal) वैल्यू अधिक होती है। कई स्टडीज में बताया गया है कि पुराने घी का रूप और गुण दोनों बदल जाता है।पुराने घी को नए घी की तरह दाल में नहीं डाला जाता और न ही रोटी पर लगाया जा सकता है।
पुराने घी को नाक के जरिए दिया जाता है। नाक को सिर का द्वार कहा गया है। नाक में पुराने घी की दो बूंदें पर्याप्त हैं। यह सीधे ब्रेन में जाता है। हालांकि इसका डोज बीमारी के हिसाब से अलग-अलग होता है।नाक में पुराने घी की बूंदें नहीं डाल सकते तो उंगली से भी नाक के छिद्र में घी लगा सकते हैं। यह भी नाक से होते हुए सीधे ब्रेन (brain) में जाता है।
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