DST: सौर कोरोनाल छिद्रों की ऊष्मीय संरचना और उनके चुंबकीय क्षेत्रों का खुलासा हुआ; जानिए

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DST: एक नए अध्ययन में सौर कोरोनाल छिद्रों के तापीय और चुंबकीय क्षेत्र संरचनाओं के भौतिक मापदंडों का सटीक अनुमान लगाया गया है, जिसका अंतरिक्ष मौसम पर अहम प्रभाव पड़ता है और जो उपग्रहों को प्रभावित करने के साथ ही भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा पर भी प्रभाव डालता है।

 

DST: सौर कोरोनाल छिद्रों की ऊष्मीय संरचना और उनके चुंबकीय क्षेत्रों का खुलासा हुआ; जानिए

कोरोनल होल, सूर्य की एक्स-रे और अत्यधिक पराबैंगनी छवियों के अंधेरे क्षेत्र हैं। ये खुली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं से युक्त हैं इसलिए ये अंतरग्रहीय माध्यम और अंतरिक्ष मौसम को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं। तापमान की अक्षांश निर्भरता और इन कोरोनल होल की चुंबकीय क्षेत्र शक्तियों को अब भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के खगोलविदों ने सटीकता से चिह्नित किया है। 1970 के दशक में एक्स-रे उपग्रहों द्वारा खोजे गए, सूर्य के वायुमंडल में कोरोनल होल एक्स-रे और विद्युत पराबैंगनी विकिरण तरंगदैर्ध्य में अंधेरे और कम घनत्व वाले क्षेत्र हैं। ये अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में खुले चुंबकीय क्षेत्र की संरचनाओं से युक्त हैं। ये तीव्र सौर गतिविधियों (450-800 किमी/सेकंड) सौर तूफान के तीव्र स्रोत हैं। इसमें आवेशित कणों की धाराएं सूर्य से बचकर अंतरिक्ष में अधिक सुगमता से पहुंचती हैं।

 

अभी तेज़ गति वाली सौर हवा पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ संपर्क में आ सकती है, जिससे भू-चुंबकीय तूफान जैसी गड़बड़ी पैदा हो सकती है। अब पृथ्वी के वायुमंडल और जलवायु पर सूर्य की सतह के काले धब्बों के प्रभाव को अच्छी तरह दर्ज किया गया है।

 

हाल में भौतिकी पर आधारित एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि सूर्य के धब्बों के प्रभाव के अलावा, कोरोनल छिद्रों के विकिरण प्रभावों के पैरामीटरयुक्त अध्ययन से भारतीय मानसून वर्षा की परिवर्तनशीलता की संतोषजनक ढंग से व्याख्या की जा सकती है। इसके अलावा, कोरोनल छिद्रों की घटनाएं पृथ्वी के आयनमंडल में उथल-पुथल से जुड़ी हैं। इससे रेडियो तरंगों को परावर्तित और संशोधित करने वाली वायुमंडल की परत में संचार संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

DST: सौर कोरोनाल छिद्रों की ऊष्मीय संरचना और उनके चुंबकीय क्षेत्रों का खुलासा हुआ; जानिए
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अंतरिक्ष मौसम के प्रभावों के इन आसन्न खतरों और भारतीय मॉनसून वर्षा पर सौर कोरोनाल छिद्रों के दीर्घकालिक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, उनके तापीय, चुंबकीय क्षेत्र संरचनाओं और उनकी उत्पत्ति का अध्ययन महत्वपूर्ण है। तापीय साधन, सूर्य पर और पृथ्वी के पास अंतरिक्ष में लैग्रेंजियन बिंदु पर निकलने वाले कोरोनाल छिद्रों के तापमान, विकिरण प्रवाह और ऊर्जा के अनुमान के लिए यह अध्ययन महत्वपूर्ण है। कोरोनाल छिद्रों की तापमान संरचना को समझने के बाद सूर्य पर उनके अक्षांशीय परिवर्तन से, गहरे सौर आंतरिक भाग में उनके प्रारंभिक विकासवादी चरण के दौरान उनकी उत्पत्ति की गहराई का अनुमान लगाया जा सकता है।

दूसरी ओर, कोरोनल छिद्रों के विकिरणीय प्रवाह और ऊर्जा का अनुमान अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में इस तापीय ऊर्जा के इनपुट के अनुमान के लिए उपयोगी होगा। इसके अलावा, कोरोनल छिद्रों की तापमान संरचना के अक्षांशीय परिवर्तन की जानकारी अप्रत्यक्ष रूप से कोरोनल छिद्रों की चुंबकीय क्षेत्र संरचना के अनुमान की तरफ ले जाती है जिससे अंततः कोरोनल छिद्रों के निर्माण को समझने का ज्ञान मिलता है।

इन महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के खगोलविदों ने इन कोरोनल छिद्रों के अध्ययन के लिए सौर और हीलियोस्फेरिक वेधशाला अंतरिक्ष जांच द्वारा देखी गई आठ वर्षों की पूर्ण-डिस्क कैलिब्रेटेड छवियों का उपयोग किया। इनका स्पष्ट रूप से पता लगाया गया और कोरोनल छिद्रों की तापीय और चुंबकीय क्षेत्र संरचनाओं के भौतिक मापदंडों का सटीक अनुमान लगाया गया।

एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से इस बात की भी व्यापक समझ मिलती है कि भूमध्यरेखीय क्षेत्र के निकट स्थित ये कोरोनल होल सौर डिस्क को पार करते समय कैसे विकसित होते हैं। आईआईए के डॉ. मंजूनाथ हेगड़े और अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा कि कोरोनल होल के विभिन्न भौतिक मापदंडों के आकलन के अलावा इस अध्ययन से दो महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं।

इसी संस्थान के डॉ केएम हिरेमथ ने कहा कि यह पाया गया कि कोरोनल होल्स की तापमान संरचना में कोई अक्षांशीय भिन्नता नहीं है और कोरोनल होल्स की चुंबकीय क्षेत्र संरचना की शक्ति में अक्षांशीय भिन्नता है जो सौर भूमध्य रेखा से ध्रुव तक बढ़ती है। पहले परिणाम से पता चलता है कि कोरोनल होल्स की उत्पत्ति गहरे अंदरूनी हिस्से से होने की संभावना है, जबकि दूसरा परिणाम बताता है कि कोरोनल होल्स का निर्माण अल्फवेन तरंग गड़बड़ी के सुपरपोजिशन से हुआ हो सकता है।

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