saraswati nadi: वैदिक काल की ‘परम पवित्र’ सरस्वती नदी के पानी का सेवन कर ऋषियों ने वेद रचे; जानिए ये रोचक जानकारी

By
On:
Follow Us

saraswati nadi: वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे ‘परम पवित्र’ नदी माना जाता था।

 

 

क्योंकि इसके तट के पास रह कर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वेद रचे औ‍र वैदिक ज्ञान का विस्तार किया। इसी कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजा जाने लगा। ऋग्वेद के ‘नदी सूक्त‘ में सरस्वती का इस प्रकार उल्लेख है कि ‘इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परूष्ण्या असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोमया’ सरस्वती, ऋग्वेद में केवल ‘नदी देवी‘ के रूप में वर्णित है (इसकी वंदना तीन सम्पूर्ण तथा अनेक प्रकीर्ण मन्त्रों में की गई है), 

 

किंतु ब्राह्मण ग्रथों में इसे वाणी की देवी या वाच् के रूप में देखा गया, क्योंकि तब तक यह नदी लुप्त हो चुकी थी परन्तु इसकी महिमा लुप्त नहीं हुई और उत्तर वैदिक काल में सरस्वती को मुख्यत:, वाणी के अतिरिक्त बुद्धि या विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी माना गया। 

 

ब्रह्मा की पत्नी के रूप में इसकी वंदना के गीत गाये गए हैं ऋग्वेद में सरस्वती को नदीतमा की उपाधि दी गयी है। उसकी एक शाखा 2.41.16 में इसे “सर्वश्रेष्ठ माँ, सर्वश्रेष्ठ नदी, सर्वश्रेष्ठ देवी” कह कर सम्बोधित किया गया है। यही प्रशंसा ऋग्वेद के अन्य छंदों 6.61, 8.81, 7.96 और 10.17 में भी की गयी है।    

 

ऋग्वेद के मंत्र 7.9.52 तथा अन्य जैसे 8.21.18 में सरस्वती नदी को “दूध और घी” से परिपूर्ण बताया गया है। 

ऋग्वेद के श्लोक 3.33.1 में इसे ‘गाय की तरह पालन करने वाली’ बताया गया है। ऋग्वेद के श्लोक 7.36.6 में सरस्वती को सप्तसिंधु नदियों की जननी बताया गया है।

(नोट – ये जानकारी विकिपीडिया से प्राप्त है)

ये भी पढ़िए- MahaKumbh 2025: तीसरे व अंतिम अमृत स्नान में डुबकी लगाने देश और विदेशी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी; देखिए खास तस्वीरें

For Feedback - vindhyaajtak@gmail.com 
Join Our WhatsApp Channel
Minimalist Tricolour_page-0001
Copy of Minimalist _page-0001
Copy of Copy of Minimalist Tricolour _page-0001

Leave a Comment

Live TV