भोपाल: MP Politics प्रशिक्षण शिविर में राहुल की वर्चुअल मास्टर क्लास..मास्टर क्लास में चुनाव की चोरी वाला जुमला, जुमलों के इतर मिशन कांग्रेस में खास क्या? राहुल के संदेश से क्या कांग्रेस की रफ्तार बढ़ेगी? क्या एरिया ऑफ फोकस चेंज होगा या नतीजे वही ढांक के तीन पांत वाले होंगे? क्योंकि पिछली बार जब राहुल आए तो लंगड़े घोड़े वाला तीर छोड़ गए थे। ले-देकर लक्ष्मण सिंह मिले, वो निकाले गए। हालांकि लंगड़े घोड़ा वाला संस्पेंस बाकी है। अब सीनियर लीडर अजय राहुल सिंह को लगातार विपक्ष में बैठना खल रहा है और वो कांग्रेसियों से बलिदान की मांग कर रहे हैं। क्या कांग्रेस को वाकई बलिदान की जरूरत है। अगर हां तो किसकी बलि अब चढ़ने वाली है और सवाल ये भी मप्र में अभी चुनाव है नहीं, तो चोरी वाली थ्योरी का इस प्रशिक्षण शिविर में आखिर रिलवेंसी क्या है?
धार के मांडू में मध्यप्रदेश कांग्रेस विधायकों के प्रशिक्षण शिविर में प्रभारी हरीश चौधरी ने क्षत्रपों के सारे अरमान ठंडे कर दिए। दरअसल हरीश चौधरी ने सामने बैठे सभी दिग्गज नेताओं को इशारे में ये साफ कर दिया कि पार्टी के पदाधिकारियों की नियुक्ति में किसी की मनमानी नहीं चलेगी। भले ही काबिल कार्यकर्ता आपकी नापसंद हो या दूसरे गुट का हो। हरीश चौधरी ने ये तक कह दिया कि बड़े नेता त्याग करने के लिए तैयार रहें। क्योंकि कांग्रेस मैं से नहीं हम से चलेगी। चौधरी ने ये बयान तब दिया तब सामने पीसीसी चीफ जीतू पटवारी,नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार,अजय सिंह राहुल,अरुण यादव,सज्जन सिंह वर्मा,ओंकार मरकाम जैसे दिग्गज तमाम विधायकों के साथ बैठे हुए थे।
कांग्रेस विधायकों के प्रशिक्षण शिविर में राहुल गांधी ने भी विधायकों की वर्चुअली क्लास ली। राहुल गांधी ने भी ये साफ कर दिया कि पार्टी समन्वय से चलेगी, मनमानी से नहीं। बैठक में राहुल गांधी ने ये भी ऐलान किया कि अब कांग्रेस सामान्य वर्ग के गरीबों की लड़ाई भी लड़ेगी। यानी साफ है कि कांग्रेस सवर्णों की नाराजगी बिहार चुनाव के पहले समझ गयी है। साथ ही आरोप फिर दोहराया कि भाजपा वोटों की चोरी करके मध्यप्रदेश में चुनाव जीती थी और अब यही बिहार में होने जा रहा है।
हालांकि भाजपा इस प्रशिक्षण शिविर को फेल बता रही है। कह रही है नकल के लिए भी अकल की जरूरत होती है औऱ क्या विधानसभा सत्र में हंगामा करने की ट्रेनिंग दी जा रही है। फिलहाल कांग्रेस विधायकों ने प्रशिक्षण शिविर से क्या हासिल किया। फिलहाल तो ये अंदाजा ही लगाया जा सकता है लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये है की क्या गुटबाजी को खत्म करने की कोशिशों का असर मध्यप्रदेश कांग्रेस पर पड़ेगा या नहीं।