Coal Mines: सिंगरौली जिले में और कितनी कोयला खदाने होने वाली हैं शुरू?; जानिए

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Coal Mines: देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला लगातार अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कोयला और बिजली उत्पादन में अव्वल रहने वाली इस ऊर्जाधानी का योगदान अब कुछ नए कोयला खदानों के आवंटन से और अधिक बढ़ने की उम्मीद है। 

 

 

जिले में नौ अन्य कोयला खदानों के जल्द चालू होने की संभावना जताई जा रही है। कोयला खदानों के संचालन शुरू होने से न केवल कोयला उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी के साथ कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत स्थानीय विकास को बढ़ावा मिलेगा। इनमें से कई भूमिगत खदानें भी शामिल हैं।

 

सिंगरौली में आनेवाले दिनों में कुछ भूमिगत कोयला खदाने, राज्य और देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। इससे सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी, जिसका उपयोग जिले के विकास कार्यों में किया जाना संभव होगा। 

 

इन खदानों से प्राप्त होने वाले राजस्व से सिंगरौली में सड़कों, अस्पतालों, और शिक्षा संस्थानों जैसे बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी की उम्मीद की जा सकती है, जिससे स्थानीय निवासियों को बेहतर सुविधाएं तो मिलेंगी ही साथ ही उनकी जीवनशैली में भी सकारात्मक बदलाव लाये जा सकेंगे।

 

भूमिगत कोयला खनन का सामरिक महत्व:

कोयला भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक प्रमुख स्तंभ बना हुआ है, जिसमें देश के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कोयला भंडार है और यह दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। कोयला भारत की ऊर्जा आपूर्ति का 55% से अधिक और बिजली उत्पादन का 74% प्रदान करता है। 2030 तक, कोयले की मांग 1,462 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है, और 2047 तक, 1,755 मिलियन टन। भारत का ऊर्जा परिदृश्य कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है, जो देश के बिजली उत्पादन में 55 % से ज़्यादा का योगदान देता है। जहाँ एक तरफ खुले खदानों से कोयला उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी ओर भूमिगत कोयला खनन भी एक महत्वपूर्ण घटक बना हुआ है, क्योंकि कुछ अनिवार्य बाध्यताएं इसे अपरिहार्य बनाती हैं। प्राथमिक बाध्यताओं में से एक भूवैज्ञानिक आवश्यकता है। भारत के कोयला भंडारों का एक बड़ा हिस्सा सतह के नीचे गहराई में स्थित है, खासकर घनी आबादी वाले या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में, जहाँ खुले में खनन या तो व्यावहारिक नहीं है या पर्यावरण के लिए हानिकारक है। भूमिगत खनन हमें इन भंडारों तक पहुँच प्रदान करता है और सतह पर होने वाले अड़चनों को कम करता है।

 

पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने के लिए भूमिगत खनन:

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भूमिगत खनन, खुली खदानों में खनन की तुलना में काफी कम धूल और ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करता है। और पारिस्थितिकी तंत्र यथावत बना रहता है। यह भूमि की सफाई और ओवरबर्डन हटाने से जुड़े कार्बन फुटप्रिंट को भी कम करता है, क्योंकि इसमें ओबी डंपिंग का प्रावधान नहीं रहता और न ही पेड़ों की कटाई की नौबत आती है, और जल प्रदूषण भी कम होता है जो पेरिस समझौते के तहत भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं के मुताबिक है।

 

आधुनिक खनन प्रणाली से उत्पादकता और श्रमिक सुरक्षा में सुधार:

सुरक्षा और तकनीकी प्रगति ने भूमिगत खनन के मामले को और मज़बूत किया है। लॉन्गवॉल और निरंतर खनन प्रणालियों जैसी आधुनिक तकनीकों ने खनन कार्यों में उत्पादकता और श्रमिक सुरक्षा दोनों में सुधार किया है। ये तकनीकें न केवल अधिक कोयला निकालने में मदद करती हैं, बल्कि खनिकों को खतरनाक स्थितियों से भी बचाती हैं। इसके अलावा, भूमिगत खनन उन क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में मददगार होता है खुली खदानों में स्वचालन के कारण श्रम की माँग कम हो गई है। यह पारंपरिक खनन समुदायों को सहारा देता है और क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

 

भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी बाधाओं को दूर करने में भूमिगत खनन महत्वपूर्ण

देश के कई राज्यों में विस्थापन सम्बन्धी चिंताओं और सामाजिक- राजनीतिक संवेदनशीलताओं के कारण खुली खदान परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, जिससे ऊर्जा के लिए कोयला उत्पादन का हमारा लक्ष्य प्रभावित होता है। भूमिगत खनन, अपने छोटे सतही प्रभाव के कारण, स्थानीय समुदायों और नीति निर्माताओं के लिए एक अधिक स्वीकार्य विकल्प प्रदान करता है। खुली खदान की तुलना में कम उत्पादन के बावजूद, भूमिगत खनन संसाधन संरक्षण के लिए आवश्यक है।

 

 

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