शह मात The Big Debate: गुरु पूर्णिमा पर भी जंग..ये सियासत का कौन सा रंग? पॉलिटिक्स के नाम पर पर्वों की बलि क्यों चढ़ाई जा रही है? देखिए पूरी रिपोर्ट

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भोपाल: MP Politics आज एमपी में गुरू पूर्णिमा के सामूहिक आयोजन को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोपों के शब्द बाण चले। वजह बना लोकशिक्षण आयुक्त का एक सरकारी आदेश। जिसमें उन्होंने गाइड लाइन ज़ारी कर लिखा प्रबुद्ध नागरिकों,गुरुजनों के साथ साधु संतों को भी स्कूलों में बुलाएं। बस विवाद यहीं से शुरू हुआ। आज भोपाल के कार्यक्रम में कोई साधु संत मुख्यमंत्री के आस-पास नहीं थे, लेकिन कांग्रेस फिर भी कौआ कान ले गया की तर्ज पर बयान देती रही कि बाकी के धर्म गुरुओं को क्यूँ महत्व नहीं देती सरकार। बहरहाल, तो आज बात करेंगे इसी मसले की क्या ऐसे आयोजनों में जिनमें सभी धर्मों की आस्था है कांग्रेस तुष्टिकरण का मार्जिन तलाश लेती है?

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MP Politics भोपाल के कमला नेहरु स्कूल में मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव बच्चों से संवाद कर रहे हैं। उन्हें भगवान् श्री कृष्ण के गुरू सांदीपनी की दिव्यता की कथा सुना रहे हैं। एमपी में जो पहले सी एम् राइज स्कूल थे उन्हें गुरू सांदीपनी के नाम पर किया गया है। आज सीएम ने उस स्कूल को भी लोकार्पित किया। यानी ऐसा कुछ भी आयोजन नहीं दिखा जिसे किसी ख़ास धर्म के क़रीब या दूर आने से जोड़कर देखा जाए। मगर कांग्रेस ऐसे आयोजनों को लगातार धर्म के चश्में से देख रही है। शायद उसकी वज़ह है। लोक शिक्षण आयुक्त का ये लेटर जिसमें लिखा हुआ है कि अन्य अतिथियों के अलावा साधु संतों को भी गुरू पूर्णिमा मनाने के लिए बुलाया जाए। कांग्रेस सवाल कर रही है कि सरकारी तौर पर ऐसे ही स्कूलों में क्रिसमस या ईद क्यों नहीं मनाई जाती? क्योंकि सरकारें तो सैक्युलर होती हैं। मुस्लिम स्कॉलर भी अब सवाल खड़े कर रहे हैं कि सरकार मुस्लिम धर्मगुरुओं से क्यों परहेज कर रही है। क्या वो उस लायक नहीं जिस लायक हिंदुओं के संत हैं?

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जाहिर है कांग्रेस का विरोध कम से कम बीजेपी को तो हजम नहीं होने वाला ना सिर्फ बीजेपी बल्कि संत समाज भी अब कांग्रेस के स्टैंड के खिलाफ खड़ा है। बीजेपी सरकार के स्कूल शिक्षा मंत्री कांग्रेस को नसीहत दे रहे हैं कि वो अपना मजहबी चश्मा बदल दे क्योंकि उस चश्मे से कांग्रेस को सिर्फ तुष्टिकरण नज़र आता है। संत समाज भी कह रहा है कि कांग्रेस को उस वक्त ऐतराज नहीं होता जब स्कूलों में बच्चों को जीसस बनाया जाता है।

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फिलहाल मध्यप्रदेश में महाकाल की शाही सवारी के बाद गुरु पूर्णिमा पर सियासत शुरु हो गयी है। वो भी तब जब कांग्रेस ये जानती है कि ऐसे नाज़ुक मौकों पर बयान देना पार्टी पर भारी पड़ता है। बावजूद इसके कांग्रेस ऐसे मौकों पर कोई स्टैंड लेने के पहले ज़रा भी नहीं सोचती। जाहिर है बीजेपी को मौका मिलता है और बीजेपी तरीके से एजेंडे को भुनाती है।

“गुरु पूर्णिमा स्कूलों में क्यों मनाई जाती है?”

गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में गुरु के सम्मान का पर्व है। स्कूलों में इसे शिक्षकों और मार्गदर्शकों के सम्मान के रूप में मनाया जाता है।

“गुरु पूर्णिमा में साधु-संतों को बुलाना क्यों जरूरी है?”

सरकारी सर्कुलर के अनुसार, संत समाज भी समाज के मार्गदर्शक माने जाते हैं, इसलिए उन्हें आमंत्रित करना परंपरा और मूल्यों के प्रचार का हिस्सा माना गया।

“क्या स्कूलों में क्रिसमस या ईद नहीं मनाई जाती?”

कई स्कूलों में सांस्कृतिक रूप से ये त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर ऐसा कोई निर्देश नियमित रूप से जारी नहीं होता।

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